शनिवार, दिसंबर 01, 2007

अनुक्रमणिका


कथा 3 ~ अनाम
कथा 1 ~ मरीचिका
  • अध्याय 1 : यादें - जीतेन्द्र चौधरी

8 टिप्‍पणियां:

Jitendra Chaudhary ने कहा…

लेकिन सर जी, कहानी का लेआउट उपन्यास की तरह होना चाहिये.....डायरी या ब्लाग की तरह से पढने मे दिक्कत आयेगी.

Pratyaksha ने कहा…

चिट्ठों की गलियों में शुरुआती सैर कर रही हूँ.......अच्छा लगा ये प्रयोग....कहानी में अलग लेखकों की अलग शैली खासी रोचक है.
कहानी आगे क्य मोड लेगी ..इसकी उत्कंठा है

मीनाक्षी ने कहा…

आज अवसर मिला तो 'बुनो कहानी' की सारी कहानियाँ पढ़ डाली।'मरीचिका में जीतेन्द्र जी ने जहाँ रवि और विभा के पात्रों को असमंजस में डाल दिया तो वहीं अतुल जी ने रवि के पात्र को सचमुच पिचका दिया और एक नारी (विभा) को धरातल न दे कर उसके साथ अन्याय किया । अतुल जी आपने पुरुष के चरित्र का गहराई से चित्रण किया है। गोविन्द जी , सबसे पहले आपको नत-मस्तक प्रणाम कि आपने 'छाया' नारी पात्र का इतना सुन्दर चित्रण किया। आपका धन्यवाद कि आप सभी लेखक पात्रों का गहराई से चित्रण कर पाए बस विभा को समझने में थोड़ी भूल कर गए। मेरे विचारों से चोट पहुँची हो तो क्षमा चाहूँगीं।

मीनाक्षी ने कहा…

"छोड़ यार, दिस इज़ अ नेवर एंडिंग डीबेट, पर तू कुछ और मान न मान, यह तो स्वीकारेगा कि कोई अद्श्य शक्ति है "देवाशीष जी , यह सच है कि इस विषय पर बहस जितनी की जाए कम है। दूसरी तरफ यह भी सच है कि आपको ऐसा कहने वाले लोग भी मिलेंगें "टच वुड, मैं नीली किताब में विश्वास नहीं करती" । दूसरे अंक में रवि जी ने मानव-मन के संघर्ष का प्रभावशाली चित्रण किया है जो आस्था-अनास्था के चक्रव्यूह में फँसा है। रमण जी आपने तो सावित्री के पात्र को लाकर आस्था-अनास्था में घिरे लोगों को नई राह दिखा दी।
बड़े-बड़े कथाकारों के बीच में रहना एक अलग ही आनन्द देता है।

मीनाक्षी ने कहा…

"इशरत अली को आज भी सूखे आचार और नसीबन की करेले सरीखी जुबान से निकले तानो के साथ अपने नाश्ते में अधजले परांठे निगलने थे।" भाषा और भावों पर अतुल जी की पकड़ आँखों के सामने सजीव चित्र खड़ा कर देता है।
"खुदा का शुक्र" कि गोविन्द जी ने उसी चित्र में अपने भावों को भाषा शैली के रंगों से भरकर सुन्दर अंत दे दिया। जितेन्द्र जी सही कहते हैं कि "हमारी "बुनो कहानी", हिन्दी साहित्य के छात्रों के बीच शोध का विषय हो सकता है."

डॉ० अनिल चड्डा ने कहा…

अति सुन्दर प्रयास है । हिन्दी साहित्य को जगत पटल पर लाने के लिये ऐसे ही कटिबद्ध रचनाकार चाहियें ।

Manjit Thakur ने कहा…

मीनाक्षी जी, आपकी सुजाई गई फिल्म इस बार इफी में शामिल नहीं है, कहीं से मिली तो ज़रूर देखूंगा। शुक्रिया

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

समस्त कहानियां अत्यंत ही रोचक हैं, अच्छी लगीं.