रविवार, सितंबर 25, 2005

कारे कजरारे : अध्याय १ : परिवर्तन

स्वाति फिर से अपने कमरे में गुमसुम-सी बैठी थी। उसकी मां रंजना हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी कि दो शब्द भी कह पाये। हो भी कैसे? उसके लाख मना करने के बाद भी लड़केवालों के सामने उसकी नुमाइश की गई। नतीज़ा फिर वही...स्वाति सांवली थी लिहाजा नापसंद कर दी गई।

डॉक्टर मां और वैज्ञानिक बाप की इकलौती संतान स्वाति। पढ़ी लिखी होनहार लड़की थी लेकिन उसका सांवलापन उसका ऐसा दोष बना हुआ था जो अपने आप में कोई दोष था ही नहीं। इन सब बातों से स्वाति की मां बहुत चिंतित रहा करती लेकिन उसके पिता कुमार सा'ब पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं था। कुमार के लिए तो उनकी प्रयोगशाला ही सबकुछ थी, जो उन्होंने घर में ही बना रखी थी।

उधर कुमार लड़केवालों के जाने के बाद ड्राइंगरूम में ही बैठे कुछ सोच रहे थे। रंजना को स्वाति के कमरे की ओर से आता देख पूछा-

"स्वाति कैसी है?”

"खुद ही जाकर देख लो! मुझसे क्या पूछते हो?" रंजना ने झुंझलाकर जवाब दिया।

"अच्छा ठीक है... मैं लैब में जा रहा हूं। वहीं एक कप चाय भिजवा देना।" और कुमार उठकर लैब की ओर जाने लगे।

"तुम तो बस चाय ही पीते रहो... क्लिनिक से लेकर घर तक सब जगह मैं ही पिसती रहूं और जवान बेटी की चिंता अलग... आखिर मां हूं न... पर तुम्हें क्या...?

रंजना खुद को संभाल न सकी और आंसू निकल पड़े।

कुमार, रंजना की ओर वापस मुड़े और सामने खड़े होकर प्यार भरी नजरों से देखते लगे।

“अब क्या है? रंजना की आवाज़ में अब कुछ नरमी थी।

"रंजना! एक बात बताओ..."

"क्या?"

"आखिर मैं भी तो काला हूं... तुमने मुझमें ऐसा क्या देखा कि आज तक हम साथ-साथ हैं?"

"मैं क्या जानूं?" थोड़ा रुककर, "लेकिन तुम ये सब अभी क्यों पूछ रहे हो?"

"इसलिए कि अगर कलूटे कुमार को प्यारी रंजना मिल सकती है तो क्या हमारी बेटी को कोई पसंद करने वाला नहीं मिलेगा?"

कुमार की आवाज़ में एक बाप का विश्वास था।

"लेकिन कुमार! अब वो बात नहीं रही... आज दुनिया काफी बदल चुकी है।"

"मैं दुनिया को फिर से बदल दूंगा।" कुमार का स्वर बदला हुआ था।

"क्या मतलब?"

"आओ मेरे साथ।" और कुमार रंजना का हाथ पकड़कर कुमार लैब की ओर जाने लगे।

रंजना की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कुमार को अचानक हो क्या गया?

रंजना को सहसा कुमार की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन वह जानती थी कि कुमार की विश्वास भरी आंखें झूठ नहीं बोल रही हैं।
लैब में आकर कुमार ने रंजना का हाथ छोड़ा और पिंजरे में कूद रहे चुहे की ओर इशारा करते हुए कहा, "जानती हो रंजना! यह सफेद चूहा कल तक काले रंग का था और...और अब हमारी स्वाति भी गोरी हो जाएगी।"

रंजना को सहसा कुमार की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन वह जानती थी कि कुमार की विश्वास भरी आंखें झूठ नहीं बोल रही हैं।

"मैं जानता हूं कि अभी तुम्हें मेरे बात पर विश्वास नहीं हो रहा होगा लेकिन मैं ऐसा कर सकता हूं। कल मैं स्वाति पर यही प्रयोग करूंगा जिसमें मुझे तुम्हारी मदद की जरुरत पड़ेगी। कल के बाद हमारी दुनिया बदल जाएगी।", कुमार ने रंजना को समझाया, फिर रंजना चली गई और वह खुद अगले दिन की तैयारी में लग गये।

अगले दिन कुमार, रंजना और स्वाति पूरी तरह से तैयार होकर लैब में आये। यहां कुमार ने स्वाति को प्रयोगशाला के बीचों बीच स्थित एक बड़ी-सी मशीन के सामने लेट जाने को कहा। मशीन देखने में किसी सीटी स्कैन की मशीन जैसी लगती थी। कुमार उस मशीन में लगे होलोग्राफिक कैमरे को संचालित करने लगे। उन्होंने पहले इस कैमरे की मदद से स्वाति की थ्रीडी फिल्म बनाई और इस फिल्म को स्कैन मशीन में ट्रांसमिट कर दिया जिससे मशीन में स्वाति के शारीरिक आयतन में स्थित एक-एक परमाणु के आंकड़े के ज़रिये पूरी शारीरिक योजना को ज्यों का त्यों सुरक्षित कर लिया।

स्वाति अपने पिता के निर्देशों का यंत्रवत पालन कर रही थी और रंजना की आंखों में विस्मय के भाव थे। थोड़ी देर बाद कुमार स्कैन मशीन से जुड़ी अपनी नायाब मशीन की ओर मुड़े जो उनकी पंद्रह सालों की मेहनत का नतीज़ा थी। कुमार ने जैसे ही इस मशीन को चालू किया रंजना चीख पड़ी क्योंकि स्वाति की जगह अब एक प्रकाश पुंज भर रह गया था।

रंजना के चेहरे पर भय और आंखों में आंसू थे।

"कुमार ये प्रयोग बंद करो..."

"लो पानी पिओ", कुमार ने रंजना की ओर पानी का गिलास बढ़ाने हुए कहा। "स्वाति को कुछ नहीं हुआ, मैंने सिर्फ उसके शरीर को ऊर्जा में बदला है।"

फिर कुमार ने उस पूरे प्रकाश-पुंज को एक प्रिज़्म से गुजारा। प्रिज़्म से निकलने वाले गाढ़े रंगों को उसने निकलने वाले दिया और हल्के रंगों को वापस स्कैन मशीन में पहुंचा दिया। कुमार ने फिर से इस ऊर्जा को पिण्ड यानी स्वाति के शरीर के रूप में बदल दिया।

स्वाति के पास जाते हुए कुमार के भी कदम एक बार डगमगा गये, लेकिन नजदीक जाकर स्वाति को देखा और चिल्ला उठे, "मैं जीत गया! रंजना! देखो मैं जीत गया... हमारी बेटी गोरी हो गई।" रंजना की आंखों में अब खुशी के आंसू थे। वह भी स्वाति की ओर बढ़ी...वह उसे छूकर देखना चाहती थी।

"अभी नहीं, पांच मिनट बाद वह खुद ही होश में आ जायेगी।" कुमार ने रंजना को रोका और दोंनों स्वाति के नये रूप को निहारने लगे।

इससे पहले की रंजना और कुमार को कुछ समझ पाते, स्वाति ने जिद पकड़ ली और बेतहाशा रोना शुरू कर दिया।
स्वाति होश में आते ही उठकर रंजना से लिपट गई और किसी बच्ची के लहज़े में कहने लगी, “मम्मी, मम्मी मुझे आइसक्रीम और गुड़िया दिला दो।” इससे पहले की रंजना और कुमार को कुछ समझ पाते, स्वाति ने जिद पकड़ ली और बेतहाशा रोना शुरू कर दिया।

कुमार की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर 24 साल की स्वाति पांच साल की बच्ची की तरह क्यों व्यवहार कर रही है? वे भागते हुए पिंजरे में बंद उस चूहे के पास पहुंचे, जिस पर यही प्रयोग एक दिन पहले किया गया था। चूहा बिल्कुल सामान्य था। "तो फिर स्वाति को क्या हुआ?" कुमार सोच में पड़ गये और सहसा ही उन्हें कुछ ध्यान आया। चूहे को तुरंत पिंजरे से निकाल कर उसे पड़ोस के टेबल पर रख उन्होंने उसे अचेत कर दिया। अगले ही पल उनकी सधी अंगुलियाँ तेज़ी से चूहे की शल्य क्रिया कर रही थीं। उन्होंने देखा कि खुन का रंग हल्का होने के कारण खास तो नहीं बदला, लेकिन चूहे की खोपड़ी का हिस्सा खुलते ही वे सकते में आ गये। चूहे के ग्रेमैटर वाला भाग भी रंग बदलने की प्रक्रिया की वजह से अब व्हाइट मैटर में तब्दील हो चुका था। इसका मतलब था कि उसके मस्तिष्क का विकास फिर से अपने शुरुआती दौर में जा पहुंचा था।

कुमार लड़खड़ा कर प्रयोगशाला की ज़मीन पर धप्प से जा बैठे। कारी कजरारी स्वाति की त्वचा तो गोरे रंग की हो चुकी थी मगर इसके साथ ही वह मानसिक रूप से से महज पांच साल की बच्ची रह गई थी। (क्रमशः)

[इस विज्ञान कथा का दूसरा भाग लिखा है मीनाक्षी ने। अवश्य पढ़ें।]

8 टिप्‍पणियां:

Jitendra Chaudhary ने कहा…

बहुत सुन्दर,
बुनो कहानी मे यह पहली विज्ञान कथा है, अच्छा लिखे तो थोड़ा सा संपादन की जरूरत है, वो देबू भाई, मौका मिलते ही कर देंगे।

हाँ तो भई कौन है दूसरा महारथी?
जो इस कहानी को आगे बढा सके।

Tarun ने कहा…

Kehani Achhi hai lekin movie dekh dekh ke itna dimaag kharab ho gaya ki suru ke 2-3 para parte hi andaaj laga liya ki aage kya hone wala hai. Shashi bhai accha prayas hai (jaisa ki aapne abataya tha ki pehli kahani thi)..Bus ek baat kehni hai

Savnlapan pehle bahut maayne rakhta tha lekin samay ke saath woh kam hona chahiye tha....doctor, scientist educated community ko bilong karte hain isliye us community me is terah ke vichhar kya maayne rakhenge....
aisa mera maanna hai, Aap kya kehte ho

SHASHI SINGH ने कहा…

तरुणभाई
आप सही कह रहे हैं कि समय के साथ चीजों को बदलना चाहिए, मगर यही तो विडम्बना है अपने समाज की. यहां रोजगार मूलक पाठ्यक्रम पूरा करके समाज में तथाकथित प्रतिष्ठा हासिल कर लेना एक बात है और सही मायनों में शिक्षित होना बिलकुल ही दूसरी बात है. आपको याद होगा कुछ वर्षों पहले दक्षिण भारतीय मूल के एक अप्रवासी किशोर ने मात्र 17 वर्ष की आयु में डॉक्टर बनकर पूरी दुनिया में नाम कमाया. इस घटना के कुछ समय बाद इसी घर में इस किशोर के बड़े भाई की पत्नी के साथ दहेज के लिए उत्पीड़न का मामला सामने आया था.
शशि

SHASHI SINGH ने कहा…

पद्मनाभजी,
कारे कजरारे का बीड़ा उठाने के लिए बधाई हो! हम तो बस उतावले हुए जा रहे हैं... सबकुछ तो ठीक़ है बस धीरज धरना ही मुश्किल लग रहा है. खैर, अच्छी चीज के लिए थोड़ा सब्र तो करना ही पड़ेगा.
शशि

बेनामी ने कहा…

bahut sunder achha prayaas hai

बेनामी ने कहा…

Wah!!!

Bahyt hee achha likhte ho aap.

Keep it up.

debashish ने कहा…

Gul,

Behad khushi hui aapka comment padh kar. Aap hamein kahani ka agala hissa Roman Hindi mein type karke bhej sakte hai, Hindi mein type hum kar lenge. Aap masauda mujhe debashish at gmail dot com per bhej sakte hein.

Shukriya,

गरिमा ने कहा…

वाह! विज्ञान गल्प काश मै इस कहानी को आगे बढाती पर मै विज्ञान गल्प पढती हुँ आज तक लिखा नही और ये कहानी इतनी अच्छी बन रही है कि मै लिखना भी नही चाहुँगी, क्युँकि मुझे नही पता मै अच्छा सा लिख पाऊँगी भी की नही :(

आगे की कहानी के इंतजार मे...

शुक्रिया
गरिमा